गुनाह का देवता
धर्मवीर भारती जी द्वारा लिखा गया एक अविस्मरणीय उपन्यास, ऐसा उपन्यास जिसे जब मैंने पढ़ना शुरू किया तो कुछ समय बाद मैं खुद भी उसका कहीं एक हिस्सा बन गया, और न जाने कितनी बार मन आंखें भर आई ।
सुरूआत में नटखटी, शर्मिली सुधा देखने को मिलती है और चंदर को हर वक़्त उसका साथ देना और , डाक्टर साहब (सुधा के पापा) का चंदर को सफल बनाने में हर संभव प्रयास करते रहना, सुधा और भूंपु का दोस्ती का दोस्तना देखने को मिलता है,
सुधा और चंदर का निश्चल प्रेम जो इस उपन्यास के माध्यम से कालंतर तक जीवीत कर देता है!!!
किन्तु चन्दर के मन विचिलित होना, अपने प्यारा को सर्वश्रेष्ठ त्याग बनना, किन्तु भूंपु उस घंमड को क्षण में तोड़ देती।
कुछ खास कथन जो यहाँ कहे गये हैं
सुधा ने कुछ नहीं कहा। झुककर चंदर के परै को अपने होठों से छू लिया और पलक से दो आँसू चू पड़े... ;
''मौन का मतलब हाँ हैन?''
मैं नहीं होता। मसलन एक औरत है जिसका ब्याह हो गया है, या होने वाला है, उसे यदि एक नयी प्रेमिका मिल जाये तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता। वह अपने पति का बहुत कम परवा करेगी अपने प्रेमी के सामने। और अगर कुवांरी लड़की है तो वह अपने प्रेमी की भावनाओं की पूरी तौर से हत्या कर सकती है उसे एक पति मिल जाये तो!
मैं तो समझता हूँ कि कोई भी पति अपनी पत्नी को यदि कोई अच्छा उपहार दे सकता है तो वह है एक नया प्रेमी और
कोई भी प्रेमी अपनी रानी को यदि कोई अच्छा उपहार दे सकता है तो वह यह है कि उसे एक पति प्रदान कर दे।
और भी बहुत कुछ इस उपन्यास में पढ़ोगे....
#समीक्षा #गुनाहकादेवता